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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।

अथवा
''गोस्वामी तुलसीदास ने अपने काव्य में समन्वय साधना का जो रूप प्रस्तुत किया है - वह अप्रितम है।" वह स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"तुलसी का समस्त काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।' इस कथन की संगति पर सतर्क विचार कीजिए।
अथवा
तुलसीदास की समन्वय भावना को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"तुलसी का समस्त काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

मानवतावादी विचारधारा - लोकनायक तुलसीदास के साहित्य का अध्ययन करने के पश्चात् यही कह सकते हैं कि उन्होंने मानव की समस्त गतिविधियों का अपने काव्य में समन्वय किया है। उनका साहित्य 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' की सफल अभिव्यक्ति है। तुलसीदास ने अपने समय की समस्त दशाओं का बहुत गहन अध्ययन करके अपने साहित्य के माध्यम से समाधान प्रस्तुत किया। कवित्व की दृष्टि से तुलसी की प्रांजलता, माधुर्य और ओज, अनुपम कथा, मानव जीवन का सर्वांग निरूपण अप्रतिम हुआ। मर्यादा और संयम की साधना में गोस्वामी जी संसार के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। 'रामचरितमानस में मर्यादावाद की जैसी सुन्दर पुष्टि गुरु की अवहेलना के लिए शिष्य को दण्डित कराके की है, राम-राज्य का वर्णन करके जो उदात्त आदर्श रखा है उसमें और ऐसे ही अनेक प्रसंगों में गोस्वामी जी की मनुष्य समाज के प्रति हित- कामना स्पष्टतः झलकती देखी जाती है। उनके अमर-काव्य में मानवता के चिरंचन आदर्श भरे पड़े हैं।

धार्मिक क्षेत्र में समन्वय - तुलसी केवल केशव की तरह एक कवि ही नहीं थे। उन्हें मानव जीवन की सभी दशाओं का ज्ञान था। वे मानवतावादी कवि थे धर्म मानव जीवन की एक अमूल्य वस्तु है। तुलसीदास ने सबसे पहले धार्मिक सम्प्रदाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया।

दार्शनिक विचारों में समन्वय - तुलसीदास के विचारों में अद्वैतवाद और विशिष्टाद्वैतवाद का समन्वय मिलता है

"कोउ कह सत्य झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै।
तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सो आपुन पहिचानै॥'

इसके द्वारा तुलसी ने दार्शनिक विद्वेष एवं वैमनस्य को दूर किया। तुलसी ने भी विशिष्टाद्वैत वादियों की भाँति संसार को नित्य शाश्वत एवं अविवासी घोषित किया है, परन्तु विनय पत्रिका में आकर तुलसी शंकर के अनुसार ही ब्रह्मा को अज, स्वतन्त्र, सर्वत्र सत्य आदि कहा है, जीव एवं जगत को सर्वाधिक एवं मिथ्या बताया है तथा माया का निरूपण भी शंकर की ही भाँति किया है। इस तरह तुलसी के विचारों में अद्वैतवाद और विसिष्टाद्वैतवाद का भी समन्वय मिलता है।

सामाजिक क्षेत्र में समन्वय - तुलसी ने जीवन के किसी भी क्षेत्र को बिना समन्वय के छोड़ा नहीं है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने 'समन्वय भावना' वाले लेख में लिखा है - तुलसी एक उच्च कोटि के समन्वयवादी कवि थे। उन्होंने जीवन और जगत से सभी क्षेत्रों में समन्वय करने का स्तुत्य प्रयत्न किया। तुलसी के काल में राजा और प्रजा के बीच गहरी खाई बनती जा रही थी। राजा प्रजा से कहीं अधिक श्रेष्ठ, उन्नत एवं महान समझा जाता था और ईश्वर का रूप माना जाता था। तुलसी ने 'रामचरितमानस' में राजा और प्रजा के कर्तव्यों का निर्धारण करते हुए दोनों के सम्यक रूप की व्यवस्था की और बताया कि 'सेवक कर, दद, नयन से मुख सो साहिब। अर्थात राजा को मुख के समान और प्रजा को कर पद एवं नेत्रों के समान जारा का हितैषी होना चाहिए। इतना ही नहीं -

'मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित विवेक॥
"

तुलसी ने राजा को मुख के तुल्य बताते हुए अपनी प्रजा के पालन-पोषण के लिए ही वस्तुओं का संग्रह करने वाला कहा है।

नर एवं नारायण का समन्वय - तुलसी ने 'भये प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी' कहकर उन्हीं ब्रह्मा को कौशल्या पुत्र या दशरथ सुत के रूप में अवतरित दिखाकर अपने इष्टदेव को साधारण मानव या नर से ऊपर उठाते हुए नारायण के ब्रह्म पद पर आसीन कर दिया है। इस प्रकार तुलसी ने राम के रूप में नर और नारायण का अथवा मानव और ब्रह्म का सुन्दर समन्वय किया है। एक उदाहरण देखिए -

"बिनु पद चलै सुनै बिनु काना। कर बिनु करम करै विधि नाना॥
जेहि इमि गावहीं वेद बुध, जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दशरथ सुत भगत हित, कोसल पति भगवान॥"

पारिवारिक क्षेत्र में समन्वय तुलसी ने धर्म एवं समाज के क्षेत्र में ही समन्वय स्थापित नहीं किया है। अपितु पारिवारिक क्षेत्र के अन्तर्गत पिता और पुत्र में पति-पत्नी में सास और पुत्र वधु में, भाई- भाई में स्वामी और अनुचर में तथा पत्नी सपत्नी में समन्वय स्थापित किया है। इसी कारण तुलसी के राम पिता के जितने भक्त हैं, उतने ही वे माताओं के भी भक्त हैं और माता-पिता भी राम के उतने ही भक्त हैं। इस प्रकार तुलसी ने पारिवारिक जीवन में समन्वय स्थापित करते हुए एक आदर्श परिवार की प्रतिष्ठा की है।

भाग्य और पुरुषार्थ में समन्वय - तुलसीदास एक महान कलाकार थे। उन्होंने भाग्यवाद और पुरुषार्थवाद में समन्वय स्थापित किया। पुरुषार्थवाद के विषय में उनका विचार था -

"करम प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा।"

भाग्यवाद के विषय में तुलसीदास का विचार है -

"तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिले सहाइ।'

उनके समन्वयवाद का रूप यह है -

"सुभ अरू असुभ करम अनुहारी। ईस देह फल हृदय विचारी॥'
करइ जो करम पाय फल सोई। निगम नीति असि कह सब कोई।"

साहित्य क्षेत्र में समन्वय - गोस्वामी तुलसीदास ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समन्वय स्थापित किया है। मानव जीवन का कोई ऐसा अंग अछूता नहीं रहा, जिस पर उन्होंने विचार नहीं किया हो। इसी प्रकार उन्होंने अपनी लेखनी के चमत्कार के लिए साहित्यिक क्षेत्र में भी समन्वय किया है।

मानव संस्कृति में समन्वय तुलसी के समस्त साहित्य का अध्ययन करने के पश्चात् कह सकते हैं कि विश्व में जितने भी मानव हैं, उनकी संस्कृति और सभ्यता हैं। उन सबका सुन्दर समन्वय हिन्दुओं के एकमात्र ग्रन्थ 'रामचरितमानस' में है, जिसमें सब कुछ अध्ययन किया जा सकता है।

राम-काव्य धारा और कृष्ण-काव्य धारा में समन्वय - तुलसीदास के साहित्य में एक नहीं अनेक ऐसी अद्भुत वस्तुएँ मिलती हैं, जिसका समन्वय करके उन्होंने संसार का बड़ा उपकार किया है। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि तुलसी स्वयं रामकाव्य धारा के प्रतिनिधि कवि थे, फिर भी कृष्ण के चरित्र को लेकर उन्होंने 'कृष्ण- गीतावली' की रचना की। संक्षेप में तुलसी का समस्त जीवन और काव्य समन्वय का ही रूप हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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